दीवाली पर सतर्क रहें! “आयुर्वेदिक” नाम पर बिक रहे हैं कॉस्मेटिक उत्पाद — BHU के शोध में हुआ खुलासा

वाराणसी। त्योहारी सीज़न में बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर “100% आयुर्वेदिक”, “हर्बल”, और “नेचुरल केयर” के नाम पर बेचे जा रहे उत्पादों पर अब सवाल उठने लगे हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के आयुर्वेद विभाग (रसशास्त्र एवं भैषज्यकल्पना) में प्रो. आनन्द चौधरी के मार्गदर्शन में डॉ. कनिका नैनवाल द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण अध्ययन में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि बाजार में उपलब्ध अधिकांश उत्पाद, जो खुद को “आयुर्वेदिक” बताते हैं, वास्तव में कॉस्मेटिक श्रेणी में आते हैं — उनके पास AYUSH लाइसेंस या औषधीय प्रमाणन नहीं होता।

शोध के अनुसार, कई कंपनियां उपभोक्ताओं के पारंपरिक विश्वास और भावनाओं का लाभ उठाकर “आयुर्वेद” शब्द को सिर्फ मार्केटिंग रणनीति के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। “100% आयुर्वेदिक”, “दादी माँ का नुस्खा”, “जड़ी-बूटी मिश्रण” और “क्षीर पाक विधि” जैसे शब्दों का प्रयोग कर उपभोक्ताओं को भ्रमित किया जा रहा है, जिससे आम लोग इन्हें असली औषधीय उत्पाद मान लेते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि त्योहारों में बालों के तेल, साबुन, फेस पैक और अन्य स्किन केयर उत्पादों की खरीदारी करते समय उपभोक्ताओं को AYUSH लाइसेंस नंबर, निर्माता की जानकारी, और GMP प्रमाणन अवश्य जांचना चाहिए। इनके अभाव में उत्पाद केवल कॉस्मेटिक श्रेणी का माना जाएगा। “क्लिनिकली टेस्टेड” या “बाल झड़ना रोके” जैसे दावे भी भ्रामक हो सकते हैं।

प्रो. आनन्द चौधरी का कहना है कि “आयुर्वेद केवल परंपरा नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से मान्यता प्राप्त चिकित्सा प्रणाली है। इसकी साख तभी बनी रह सकती है जब उपभोक्ता जागरूक रहें और निर्माता ईमानदारी से काम करें।”

यह शोध इंटरनेशनल जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज के वॉल्यूम 3, इश्यू 9, पृष्ठ 1690-1698 में प्रकाशित हुआ है।

इस दीवाली, जब आप अपने परिवार के लिए आयुर्वेदिक तेल, साबुन या फेस पैक खरीदें — तो सिर्फ नाम नहीं, प्रमाण देखें। असली आयुर्वेद अपनाएँ ताकि परंपरा भी सुरक्षित रहे और स्वास्थ्य भी।

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