नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने “ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य” मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए स्पष्ट किया कि यदि कोई संज्ञेय अपराध सामने आता है, तो पुलिस के लिए एफआईआर (FIR) दर्ज करना अनिवार्य होगा।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि संज्ञेय अपराध (Cognizable Offense) की सूचना मिलने पर पुलिस को तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी होगी। ऐसे मामलों में प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि यह पीड़ित को न्याय से वंचित कर सकता है और प्रक्रिया में अनावश्यक देरी कर सकता है।
फैसले के मुख्य बिंदु:
- FIR दर्ज करना अनिवार्य: यदि किसी संज्ञेय अपराध (जैसे हत्या, बलात्कार, अपहरण, चोरी आदि) की जानकारी पुलिस को दी जाती है, तो पुलिस के पास एफआईआर दर्ज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
- प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं: ऐसे मामलों में पुलिस को पहले जांच करने या सूचना की सत्यता जांचने की जरूरत नहीं होगी, बल्कि सीधे एफआईआर दर्ज करनी होगी।
- कुछ मामलों में जांच संभव: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मामला संदिग्ध या जटिल प्रकृति का हो, तो पुलिस पांच से सात दिन की प्रारंभिक जांच कर सकती है, लेकिन यह केवल अपवादस्वरूप होगा।
- नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा: अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि इस निर्णय से झूठे मामलों में फंसाने की संभावना बढ़ सकती है, लेकिन कानून में ऐसे प्रावधान मौजूद हैं, जिनके तहत गलत शिकायतों पर कार्रवाई की जा सकती है।
फैसले का प्रभाव:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह सुनिश्चित हो गया कि पुलिस अब किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर एफआईआर दर्ज करने में देरी नहीं कर सकती। यह पीड़ितों को त्वरित न्याय दिलाने में मदद करेगा और पुलिस की जवाबदेही भी तय करेगा।
क्या था ललिता कुमारी मामला?
यह मामला उत्तर प्रदेश के ललिता कुमारी से जुड़ा था, जिनके अपहरण की शिकायत उनके परिवार ने पुलिस में की थी, लेकिन पुलिस ने तुरंत एफआईआर दर्ज नहीं की। इस देरी के चलते मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां अदालत ने पुलिस के इस रवैये को गलत ठहराया और स्पष्ट किया कि संज्ञेय अपराधों में एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होगा।
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