किशोरियों की आवाज़ बनी बदलाव की शुरुआत

मासिक धर्म पर खुला संवाद

पिंडरा।विकासखंड बड़ागांव में किशोरियों के जीवन को सशक्त और जागरूक बनाने की दिशा में जनमित्र न्यास द्वारा स्वास्थ्य, पोषण और मासिक धर्म से जुड़ी विशेष पहल की गई। इस अभियान का उद्देश्य किशोरियों को उनके शरीर और मानसिक स्वास्थ्य के प्रति सजग बनाना था, साथ ही मासिक धर्म जैसे संवेदनशील विषय पर खुलकर बातचीत की शुरुआत करना भी था।
मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के अवसर पर ग्राम दल्लीपुर (ताड़ी) की सीएमसी में एक प्रमुख कार्यशाला आयोजित की गई। इसमें प्रभारी चिकित्साधिकारी डॉ. शेर मोहम्मद, स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी श्री वरुण कुमार वर्मा, मुख्य सेविका श्रीमती प्रभावती देवी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सरोज सिंह और सुषमा सिंह, आशा कार्यकर्ता सुमन तथा जनमित्र न्यास से संध्या और चमेली देवी उपस्थित रहीं। कार्यशाला का संचालन मंगला प्रसाद द्वारा मानवाधिकार जननिगरानी समिति के माध्यम से किया गया।
कार्यशाला में किशोरियों को मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता बनाए रखने, सैनिटरी नैपकिन के सुरक्षित उपयोग और निपटान, संतुलित आहार की महत्ता और एनीमिया से बचाव जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर जानकारी दी गई। विशेष बात यह रही कि पहली बार कई किशोरियों ने इस विषय पर खुलकर बात की और अपने अनुभव साझा किए।
एक किशोरी ने साझा किया कि पहले उसे मासिक धर्म के बारे में बात करने में शर्म आती थी, लेकिन अब समझ में आया है कि यह एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे लेकर डरने या छिपाने की जरूरत नहीं है। कई किशोरियों ने पहली बार सैनिटरी नैपकिन के बारे में जाना, जबकि कुछ ने रीयूजेबल पैड्स के उपयोग में भी रुचि दिखाई। कार्यक्रम में माताओं और अन्य महिलाओं की भागीदारी यह दर्शाती है कि यह विषय अब सिर्फ किशोरियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि परिवार और समुदाय के स्तर तक पहुंच बना रहा है।
जनमित्र न्यास की टीम और स्थानीय कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी और समर्पण ने यह साबित किया कि सही जानकारी और सम्मानजनक संवाद का माहौल मिले तो सामाजिक वर्जनाएं भी टूट सकती हैं। एक प्रशिक्षिका ने कहा कि हमारा उद्देश्य मासिक धर्म को लेकर बनी चुप्पी को तोड़ना था और हमने इसकी एक मजबूत शुरुआत की है।
यह पहल केवल एक सप्ताह का आयोजन नहीं है, बल्कि किशोरियों के आत्मविश्वास, समझ और अधिकारों को मजबूत करने की दिशा में उठाया गया एक स्थायी कदम है। यह संदेश देता है कि मासिक धर्म से जुड़ी शर्म नहीं, बल्कि समझ और गरिमा की जरूरत है और यही बदलाव की असली शुरुआत है।

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